बलिदान दिवस पर 23 जून पर विशेष



 पाक अधिकृत कश्मीर की वापिसी के साथ पूरा  होने वाला है डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का स्वप्न

सुरेन्द्र शर्मा

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्वतंत्र भारत के प्रथम बलिदानी जिन्होने देश की एकता और अखंडता के लिए अपना बलिदान दिया।

भारत के पहले उद्योग मंत्री जिन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति के विरोध में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की और एक देश में दो विधान दो निशान दो प्रधान नहीं चलेंगे के संकल्प के साथ कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश किया और देश की एकता और अखंडता के लिए बलिदान हो गए। 

 डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा”।

उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता। मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।”

उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था।

नेशनल कांफ्रेंस का डोगरा-विरोधी उत्पीड़न वर्ष 1952 के शुरूआती दौर में अपने चरम पर पहुंच गया था। डोगरा समुदाय के आदर्श पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने बलराज मधोक के साथ मिलकर ‘जम्मू व कश्मीर प्रजा परिषद् पार्टी’की स्थापना की थी। इस पार्टी ने डोगरा अधिकारों के अलावा जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत संघ में पूर्ण विलय की लड़ाई, बिना रुके, बिना थके लड़ी।  इस कारण से डोगरा समुदाय के लोग शेख अब्दुल्ला को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे।

शेख अब्दुल्ला के दिमाग में जो योजनाएं थीं, उनके मुताबिक जम्मू व कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाया जा सकता था, जिसका अपना संविधान, राष्ट्रीय विधानसभा, सुप्रीम कोर्ट और झंडा होगा। प्रजा परिषद् के नेताओं ने किसी तरह उस संविधान के प्रारूप की कॉपी हासिल कर ली, जिसके कारण भी वे शेख अब्दुल्ला की नजरो में चढ़ गए। उस समय के तात्कालीन इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख बीएन मलिक ने अपनी किताब ‘माई इयर्स विद नेहरू: कश्मीर’ में लिखा है कि शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि सारे डोगरा कश्मीर छोड़कर भारत चले जाएं, और अपनी जमीन उन लोगों के लिए छोड़ दें, जिन्हें शेख अब्दुल्ला प्राणपन से चाहते थे।

डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए हुए ही 8 मई, 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर पंजाब के रास्ते जम्मू के लिए निकले।  उनके साथ बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, टेकचंद, गुरुदत्त वैध और कुछ पत्रकार भी थे। रास्तें में हर जगह डॉ.मुखर्जी की एक झलक पाने एवं उनका अविवादन करने के लिए लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता था। डॉ. मुखर्जी ने जालंधर के बाद बलराज मधोक को वापस भेज दिया और अमृतसर के लिए ट्रेन पकड़ी।

ट्रेन में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने गुरदासपुर (जिला, जिसमे पठानकोट आता है) के डिप्टी कमिश्नर के तौर पर अपनी पहचान बताई और कहा कि ‘पंजाब सरकार ने फैसला किया है कि आपको पठानकोट न पहुंचने दिया जाए। मैं अपनी सरकार से निर्देश का इंतज़ार कर रहा हूं कि आपको कहां गिरफ्तार किया जाए?’ हैरत की बात यह निकली कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया, न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और, अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ.मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे।

पठानकोट पहुंचने के तुरंत बाद गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर, जो उनका पीछा कर रहे थे, ने उनसे मिलने की इजाजत मांगी। उन्होंने डॉ. मुखर्जी को बताया कि उनकी सरकार ने उन्हें निर्देश दिया है कि वे उन्हें और उनके सहयोगियों को आगे बढ़ने दें और बिना परमिट के जम्मू व कश्मीर में प्रवेश करने दें। उस अफसर को खुद हैरानी हो रही थी कि उसे जो आदेश मिलने वाले थे, वे पलट कैसे दिए गए। उसे तथा वहां मौजूद अन्य किसी को भी इस साजिश की जरा भी भनक नहीं थी, जिसके अनुसार डॉ. मुखर्जी को जम्मू व कश्मीर में गिरफ्तार किये जाने की योजना बन चुकी थी ताकि वे भारतीय सर्वोच्च न्यायलय के अधिकार-क्षेत्र से बाहर पहुँच जाएं। उनका अगला ठहराव रावी नदी पर बसे माधोपुर की सीमा के पास चेकपोस्ट था।

रावी पंजाब की पांच महान नदियों में से एक थी, जो पंजाब और जम्मू व कश्मीर की सीमा बनाते हुए बीच से बहती थी। नदी के आर-पार जाने के लिए सड़कवाला एक पुल था, और राज्यों की सरहद इस पुल के बीचों-बीच थी। जैसे ही डॉ.मुखर्जी की जीप ब्रिज के बीच में पहुंची, उन्होंने देखा की जम्मू व कश्मीर पुलिस के जवानों का दस्ता सड़क के बीच में खड़ा है। जीप रुकी और तब एक पुलिस अफसर, जिसने बताया कि वह कठुआ का पुलिस अधीक्षक है, उसने राज्य के मुख्यसचिव का 10 मई, 1953 का एक आदेश सौपा, जिसमे राज्य में उनके प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

“लेकिन मैं जम्मू जाना चाहता हूँ !” डॉ मुखर्जी ने कहा" इसके बाद उस पुलिस अफसर ने गिरफ्तारी का आदेश अपनी जेब से निकाला, जो पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जारी किया गया था और जिस पर जम्मू व कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक पृथ्वीनंदन सिंह का 10 मई का दस्तखत था, जिसमे कहा गया था डॉ.मुखर्जी ने ऐसी गतिविधि की है, कर रहे हैं या करनेवाले हैं, जो सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति के खिलाफ है, अतः उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया जाता है।

प्रश्न यह उठता है कि यदि उनकी तथाकथित गतिविधियों से सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति को इतना ही बड़ा खतरा था, तो उन्हें जम्मू व कश्मीर के सीमा में प्रवेश करने से पहले ही क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया जैसा कि गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर ने डॉ.मुखर्जी को इस बारे में बताया था? उन्हें पठानकोट या उससे पहले ही गिरफ्तार किए जाने की योजना क्यों बदल दी गई? उन्हें आगे बढ़ने ही क्यों दिया गया? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो आज भी अनुत्तरित हैं।

डॉ.मुखर्जी को जिस जगह बंदी बनाया गया था, वह वाकई एक बहुत छोटा सा मकान था, जिसके आसपास कुछ भी नहीं था- निशात बाग़ के करीब, लेकिन श्रीनगर शहर से काफी दूर, जिसे एक उपजेल बना दिया गया था। इस मकान तक पहुंचने के लिए खड़ी सीढियां चढ़नी पड़ती थीं, खासकर उनके ख़राब पैर की वजह से यह और भी मुश्किल हो जाता होगा।

इस मकान का सबसे बड़ा कमरा दस फीट लम्बा और ग्यारह फीट चौड़ा था, जिसमे डॉ.मुखर्जी को बंदी बनाया गया था। वहीं किनारे के दो छोटे-छोटे कमरों में उनके साथ बंद गुरुदत्त वैध और टेकचंद को रखा गया था। शहर से कोई डॉक्टर तभी आ सकता था, जब उसे विशेष रूप से बुलाया जाता। बांग्‍ला भाषा में लिखी गई उनकी द्वारा चिट्ठियों की विशेष अनुवादक द्वारा जांच कराई जाती थी। शेख अब्दुल्ला ने यह आदेश दे रखा था कि डॉ.मुखर्जी को कोई अतिरिक्त सहूलियत तब-तक न दी जाए, जब तक वे खुद आदेश न दें।

इधर, जेल में रहने के दौरान उनके किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को उनसे मिलने नहीं दिया गया, यहां तक कि उनके बड़े बेटे अनुतोष की अर्जी भी ठुकड़ा दी गई। वह जेल में प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे, जो कि उनके बारे में जानकारी का एक अच्छा स्त्रोत हो सकता था परन्तु शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उनकी मौत के बाद उस डायरी को जब्त कर लिया और बार-बार गुजारिश के बावजूद भी अभी तक लौटाया नहीं गया है। 24 मई को पंडित नेहरू और डॉ.कैलाशनाथ काटजू आराम करने श्रीनगर पहुंचे पर उन लोगों ने डॉ.मुखर्जी से मुलाक़ात कर उनका कुशलक्षेम पूछना भी उचित नहीं समझा।

22 जून 1953  की सुबह उनकी तबियत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ गई। जेल अधीक्षक को सूचित किया गया। काफी विलम्ब से वह एक टैक्सी (एम्बुलेंस नहीं) लेकर पहुंचे और वह डॉ.मुखर्जी को उस नाज़ुक हालात में भी उनके बेड से चलवाकर टैक्सी तक ले गए। उनके बाकी दो साथियों को उनके साथ उनकी देखभाल करने के लिए अस्पताल जाने की इजाजत नहीं दी गई। उन्हें कोई निजी नर्सिंग होम में नहीं बल्कि राजकीय अस्पताल के स्त्री प्रसूति वॉर्ड में भरती कराया गया।

एक नर्स जो कि डॉ.मुखर्जी के जीवन के अंतिम दिन उनकी सेवा में तैनात थी, ने डॉ.मुखर्जी की बड़ी बेटी सविता और उनके पति निशीथ को काफी आरजू-मिन्नत के बाद श्रीनगर में एक गुप्त मुलाकात के दौरान यह बताया था कि उसी ने डॉ. मुखर्जी को वहां के डॉक्टर के कहने पर आखिरी इंजेक्शन दिया था। उसने बताया कि जब डॉ मुखर्जी सो रहे थे तो डॉक्टर जाते-जाते यह बता कर गया कि, ‘डॉ मुखर्जी जागें तो उन्हें इंजेक्शन दे दिया जाए और उसके लिए उसने एम्प्यूल नर्स के पास छोड़ दिया।’

इस तरह कुछ देर बाद जब डॉ.मुख़र्जी जगे तो उस नर्स ने उन्हें वह इंजेक्शन दे दिया। नर्स के अनुसार जैसे ही उसने इंजेक्शन दिया डॉ.मुखर्जी उछल पड़े और पूरी ताकत से चीखे, ‘जल जाता है, हमको जल रहा है।’ नर्स टेलीफोन की तरफ दौरी ताकि डॉक्टर से कुछ सलाह ले सके परन्तु तब तक वह मूर्छित हो चुके थे और शायद सदा के लिए मौत की नींद सो चुके थे। पंडित नेहरू जो डॉ.मुखर्जी की मृत्यु के दौरान लन्दन में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ की ताजपोशी में हिस्सा ले रहे थे, ने बॉम्बे एअरपोर्ट पर उतरने के पश्चात भी इस त्रासदी पर कुछ भी नहीं बोले जिसने उनकी अनुपस्थिति में पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।

डॉ. मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने नेहरू के 30 जून, 1953 के शोक सन्देश का 4 जुलाई को उत्तर देते हुए पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनके बेटे की रहस्मयी परिस्थितियों में हुई मौत की जांच की मांग की। जवाब में पंडित नेहरु ने बड़ी मीठी-मीठी बातें लिखीं, दुखियारी मां के लिए आकंठ करुणा की अभिव्यक्ति की; परन्तु जांच की मांग को ख़ारिज कर दिया।  उन्होंने जवाब देते हुए यह लिखा कि, “मैंने कई लोगों से इस बारे में मालूमात हासिल किए हैं, जो इस बारे में काफी कुछ जानते थे। मैं आपको सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मैं एक स्पष्ट और इमानदार नतीजे पर पहुंच चुका हूं कि इसमें कोई रहस्य नहीं है और डॉ.मुखर्जी का पूरा ख्याल रखा गया था।

यहां सबसे बड़ा विचारनीय प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आखिर पंडित नेहरू ने जांच की मांग को ख़ारिज क्यों कर दिया? क्या उन्हें नैतिक, राजनैतिक या संवैधानिक किसी भी अधिकार के तहत इस प्रकार का फैसला सुनाने का हक था? क्या कोई गुप्त बात थी अथवा इस घटना के पीछे कोई साजिश थी जिसके जांच उपरांत बाहर आ जाने का डर था? ये सारे प्रश्न इसलिए प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि जब कभी भी एक मशहूर शख्‍सियत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती है, अथवा वह गायब होता है, तब एक जांच जरूर होती है। इस तरह के कम से कम तीन कमीशन नेताजी सुभाषचंद्र बोस के गायब होने की जांच करने के लिए बनाए गए।

ये कमीशन थे – शाहनवाज़ कमीशन (1956), जीडी खोसला कमीशन (1970) और मनोज मुखर्जी  कमीशन(1999)। महात्मा गांधी की हत्या की जांच कपूर कमीशन ने, इंदिरा गांधी कि हत्या की जांच ठक्कर कमीशन ने और राजीव गांधी की हत्या की जांच के लिए दो कमीशन जेएस वर्मा कमीशन और एमसी जैन कमीशन ने जांच की।

यहां यह गौरतलब है कि ये सभी हत्याकांड (नेताजी के गायब होने को छोड़कर) सबके आंखों के सामने हुए; फिर भी कातिलों की पृष्ठभूमि और साजिश का पता लगाने के लिए जांच की गई, लेकिन डॉ.मुखर्जी की अकाल मौत रहस्मयी परिस्थितियों में एक गुप्त जगह में, परिवार और दोस्तों से दूर, एक शत्रुतापूर्ण क्षेत्र में हुई, जहां भारत के सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र तक नहीं था, बावजूद इसके आज तक इस घटना की औपचारिकता मात्र के लिए भी एक जांच नहीं हुई है।

क्या यह डॉ.मुखर्जी एवं उनके परिवार के साथ-साथ पूरे देश के साथ एक सरासर धोखा नहीं है? क्या देश की जनता को यह जानने का हक नहीं है कि उसके प्रिय नेता की मौत के पीछे का जिम्मेदार कारक कौन था? कम से कम अभी की वर्तमान सरकार को चाहिए कि इस मामले में एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच समिति का गठन करे और जनता के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास करे क्योंकि यदि यह अभी नही होगी तो फिर कभी नही होगी।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मृत्यु के तुरंत पश्चात उस समय के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्व पल्ली राधा कृष्णन ने नम नेत्रों से से डॉक्टर मुखर्जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि "अपने सार्वजनिक जीवन में वह अपनी अंतरात्मा की आवाज को एवं अपनी अंदरुनी प्रतिबद्धताओं को व्यक्त करने में कभी नहीं डरते थे।"

खामोशी में कठोरतम झूठ बोले जाते हैं ,जब बड़ी गलतियां की जाती हैं तब इस उम्मीद में चुप रहना अपराध है कि एक न एक दिन कोई सच बोलेगा।

विडंबना यह है कि तत्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी और उससे भी बड़ी विडंबना की बात यह है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मृत्यु के सच को जान पाने में नाकामयाब रही है।।

♦डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने अपने बेटे की रहस्यमयी मौत के बाद नेहरू को जो पत्र लिखा था उसे आज विशेष तौर पर पढ़ा जाना चाहिए  क्योंकि इस पत्र में एक मां का करुण क्रंदन है, एक प्रतिज्ञा है,और एक “श्राप” भी है।

"पंडित नेहरू जी,

मैंने अपने बेटे की रहस्यमयी मृत्यु पर एक निष्पक्ष जांच की मांग की थी ना कि आपका कोई निष्कर्ष मांगा था। आखिर आपको एक खुली और निष्पक्ष जांच से दिक्कत क्या है? मेरे पास पक्के सबूत हैं जिनसे काफी कुछ साबित हो सकता है। लेकिन आपने उन्हें जानने या समझने की कोई कोशिश नहीं की। आप सबूतों का सामना करने से डरते हैं। मैं जम्मू कश्मीर की सरकार को अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार मानती हूं और ये आरोप भी लगाती हूं कि आपकी सरकार भी इसमें शामिल थी।

मैं चाहती हूं कि भारत के लोगों को पता चले कि इस दुखद घटना के असली कारण क्या हैं, जिसे एक "स्वतंत्र देश" में अंजाम दिया गया और जिसमें आपकी सरकार ने भी एक भूमिका अदा की। लेकिन एक दिन सच सामने आएगा, एक दिन आपको भारत के लोगों को और स्वर्ग में भगवान को भी जवाब देना होगा।"

जोगमाया देवी

(डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मां)

दिनांक - 9 जुलाई 1953

♦वर्ष 1994 में भारत की संसद ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित किया था कि पाकिस्तान के कब्जे से कश्मीर का हिस्सा वापिस ले लिया जाए

प्रस्ताव पेश करते हुए तत्कालीन लोकसभा  अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल ने कहा"इस प्रस्ताव के प्रत्येक शब्द और वाक्य पर सरकार और विपक्षी दल के नेताओं द्वारा गंभीरता से विचार किया गया है"।

पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर से उत्पन्न भारत में आतंकवाद की निंदा करते हुए प्रस्ताव में कहा गया है"यह सदन पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शिविरों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने,हथियारों और धन की आपूर्ति करने तथा जम्मू कश्मीर में विदेशी भाड़े के सैनिकों सहित प्रशिक्षित आतंकवादियों की घुसपैठ में सहायता करने में पाकिस्तान की भूमिका पर गहरी चिंता व्यक्त करता है,जिसका उद्देश्य अव्यवस्था असमंजस्य और तोड़फोड़ पैदा करना है।"

प्रस्ताव में "पाकिस्तान से आतंकवाद को अपना समर्थन तुरंत बंद करने का आह्वान किया गया और कहा गया कि भारतीय राज्य "अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण की गारंटी देता है।

प्रस्ताव में कहा गया "जम्मू और कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग रहा है,है और रहेगा,तथा इसे देश के बाकी हिस्सों से अलग करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक  साधनों से विरोध किया जायेगा "

प्रस्ताव में आगे कहा गया" भारत में अपनी एकता संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ सभी साजिशों का दृढ़ता से मुकाबला करने की इक्षा शक्ति और क्षमता है और वह मांग करता है कि पाकिस्तान को भारतीय राज्य जमी और कश्मीर के उन क्षेत्रों को खाली करना चाहिए जिन पर उसने आक्रामकता के माध्यम से कब्जा कर रखा है।

प्रस्ताव में कहा गया कि भारत के अंतरिक मामलों  हस्तक्षेप करने के सभी प्रयासों का दृढ़ता से जवाब दिया जायेगा।।

2014 में भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कश्मीर की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठाए गए कश्मीर वासियों का दिल जीतना आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति और जम्मू कश्मीर राज्य के विकास के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए।

कश्मीर को भारत से अलग करने वाली धारा 370 और 35 A को 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद ने हटा दिया इसके साथ ही पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा की गई ऐतिहासिक भूल का सुधार हुआ  और डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का संकल्प पूर्ण हुआ। 

प्रस्ताव पेश करते हुए भारत के गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा था "जम्मू कश्मीर पर संसद में कानून बनाने और संकल्प पेश करने से हमे कोई नहीं रोक सकता,जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इसे लेकर कोई कानूनी विवाद नहीं है भारत के संविधान और जम्मू कश्मीर के संविधान में इसे स्पष्ट किया गया है।

अमित शाह जी ने कहा कि जब में जम्मू कश्मीर कहता हूं तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी ओ के) और अक्साई चीन भी इसके अंदर आता है।

उन्होंने तब के नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी से सवाल पूछते हुए कहा था क्या कांग्रेस पी ओ के को भारत का हिस्सा नहीं मानती ।

हमने कश्मीर के लिए बलिदान दिया है,हम वर्षों से नारा लगाते आए हैं "जहां हुए बलिदान मुखर्जी,वह कश्मीर हमारा है।जो कश्मीर हमारा है वह सारे का सारा है"

जरूरत पड़ी तो कश्मीर और पी ओ के के  लिए हम जान भी दे देंगे।

जम्मू-कश्मीर में धारा 35ए और अनुच्‍छेद 370 (Article-370) हटाए जाने के मोदी सरकार के फैसले ने पूरी दुनिया में इस इलाके की परिभाषा बदल दी है. पाकिस्तान जहां तब तक जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के रास्ते आंतकवादी (Terrorist) भेज पूरे भारत में आतकंवाद फैलाने की बात कर रहा था, आज वही पाकिस्तान दुनिया भर में जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने की बात कर रहा है.

पाकिस्तान (Pakistan) लगातार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मामला उठाकर उसे विवादित बताने पर जुटा रहता था लेकिन मोदी सरकार (Modi Government) के जम्मू-कश्मीर से धारा 35ए और अनुच्‍छेद 370 हटाने के फैसले के बाद पाकिस्तान अब पाक अधिकृत कश्मीर बचाने में जुटा हुआ है. बिलावल भुट्टो जरदारी, मरियम नवाज शरीफ जैसे पाकिस्तान के विपक्ष में बैठे नेता कई बार ये बयान जारी कर चुके हैं कि भारत की नजर अब मुजफ्फराबाद पर है. साफ है जो बात भारत दुनिया के मंच पर बरसों से कह रहा था वही बात अब पाकिस्तान के नेता भी करने लगे हैं.

भारत अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) को अपना बताता रहा है और पाकिस्तान पर उस हिस्से को खाली करने का दबाव भी बनाता रहा है. यहां तक कि लोकसभा और विधानसभा में पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके की सीटें भी है  यद्यपि अभी उन पर चुनाव नहीं होता है. साफ है पाक अधिकृत कश्मीर पर भले ही आज की तारीख में पाकिस्तान ने जबरन कब्जा जमा रखा है लेकिन ये इलाका भारत का है. भारत बार-बार इसका दावा भी करता रहा है लेकिन पहली बार पाकिस्तान के नेताओं ने भारत के दावे को गंभीरता से लिया है.

मोदी सरकार के फैसले के बाद बदल गई है दुनिया में कश्‍मीर पर बहस हो रही है ।

 साफ है भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तैयारी पूरी है और यही वो सबसे बड़ा डर है जो पाकिस्तान को सता रहा है

पीओके (PoK) पर मजबूत हुआ भारत का दावा दरअसल धारा 35ए और अनुच्‍छेद 370 हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भारत के संविधान के साथ-साथ वो सारे नियम कानून लागू हो गए हैं जो भारत सरकार बनाती है. इसका सीधा और सरल मतलब है कि जम्मू-कश्मीर भी भारत का उसी तरह का हिस्सा है जिस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य. भारत सरकार के अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का हिस्सा है इसलिए अब उस इलाके में भी भारत का संविधान देश के अन्य हिस्सों की तरह लागू होगा. साफ है पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा लेने के लिए फिलहाल मोदी सरकार भले ही सीधे-सीधे कुछ नहीं बोल रही हो लेकिन जम्मू- कश्मीर में 35ए और धारा 370 हटाने के बाद सरकार ने उस ओर ठोस कदम बढ़ा दिया है।

भारत के विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर से उनके लंदन दौरे के समय एक स्वतंत्र नीति संस्थान चैथम हाउस  में कश्मीर के मुद्दे पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि "पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को खाली करने से कश्मीर मुद्दा पूरी तरह हल हो जायेगा।

भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि पी ओ के में रहने वाले ज्यादातर लोग भारत से गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं बस कुछ ही लोग हैं जिन्हें गुमराह किया गया है।

उन्होंने कहा "पीओके में रहने वाले हमारे भाइयों की स्थिति वीर योद्धा महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह जैसी है।भारत हमेशा दिलों को जोड़ने की बात करता है पीओके के लोग हमारे अपने हैं।

हम "एक भारत ,महान भारत के संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं।

आने वाले समय में पीओके के लोग 

स्वतः ही भारत के साथ मिल जायेंगे।।


परिस्थितियां बता रही हैं कि शीघ्र ही पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी वापिस आयेगा और डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जिस उद्देश्य के लिए अपना बलिदान  दिया था वह संकल्प अतिशीघ्र पूर्ण होने वाला है।

प्रकाशन हेतु सादर

सुरेन्द्र शर्मा 

प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भाजपा मध्यप्रदेश 

जिला प्रभारी राजगढ़ 

पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री अभाविप 

email:surendrasharmabjp @gmail.com

📱 9074600001

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